आजकल अकेले में एक खेल खेलते हैं।
हुआ यूँ की एक सुबह बासी फूलों की माला बेटी के हाथ में देकर कहा, बाहर क्यारी में डाल आओ. बेटी वापिस आ के धीरे से बोली, डाल दिये पेड़ों में, 'क्यारी' क्या होती है पता नही. वह बैंगलोर में पढ़ी-बढ़ी, उसका दोष नहीं। जब ५ साल की ले के आये थे तो अंग्रेजी नहीं जानती थी। स्कूल में माहोल कड़क था, शायद ज़यादा चुप रहती होगी। पर स्कूल से बाहर, घर के पास, दूसरे अंग्रेज़ी में बात करते बच्चों के साथ भागती-फिरती जाने कब अंग्रेजी में कान काटने लगी।
पर हमें क्या हुआ? जब यहाँ आ के सौदा लिखवाने लगे, कहा, पोहा। दूकानदार ने दोहराया, 'बीटेन राइस'। तो धीरे-धीरे हम भी जाने कब लिखवाने लगे पफ्ड राइस, मॉप, कोकोनट ब्रूम, मस्टर्ड, आमंड। सब्ज़ी वाले से मांगने लगे एक कैबेज, पाँच रड्डिश, दो कैप्सिकम। खोने लगे धीरे-धीरे शब्दावली। और अब तो यह जो एक अजीब सी खिचिड़ी है - न हिंदी, न अंग्रेजी, यही बोली है सबकी जैसे, neighbor की key। किसी बड़े को 'नमस्ते' करो तो वो जवाब देते हैं, 'हेलो बेटा'।
इसलिए जब दीदी ने कहा, 'आज से आचारसंहिता लगी है ना' एकदम ऐसे जैसे 'बारिश आने वाली है ना '। 'आचारसंहिता' !! ऐसे कैसे कोई रोज़मर्रा की भाषा में यह बोल लेता है ? आराम से, बिना सोचे? मतलब एकदम दिमाग धमाका !!
तो घर में कोशिश की गयी ज़्यादा से ज़्यादा हिंदी/हिंदुस्तानी शब्दों का इस्तेमल करने की।
राजस्थान के पंजाबी और उत्तर प्रदेश के मध्य प्रदेशी की हिंदी में काफ़ी खिचाव रहा, खासकर लिंग को ले कर। इनका दही 'होती' है, हमारा 'होता' है. इनका कंघा, हमारी कंघी। जिसे हम शक्कर कहते हैं, उसे यह चीनी, और बूरे को शक्कर! कॉक्रोच, चींटी, चींटा, इल्ली, कीड़ा इनके लिए सब 'कीड़ी' और ऐसा बहुत कुछ। कुछ भाषा शैली भी अलग है। एक दुसरे के कान को चुभते हुए कुछ बोल। फ़ोन पे कह रहे थे अपने बहन से, 'और मिठाई मत भेजना, पहले वाली भी पड़ी है '। 'पड़ी है' ? तौबा ! रखी हैं, जनाब !
तो यह तो बहुत दिन चला नही। फिर अपने साथ ही यह खेल शुरू हुआ। हर वह चीज़ जिसे अब अंग्रेजी में ही बोलते हैं, को हिंदी में बोलना। बस अब सब संगीत है। अकेलापन कम है। बचपन की खुश्बू ज़्यादा।
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